वाह रे राजनीति
एक पुष्प अर्पित ना किये शहीद चंदन के अर्थी पर,
रोते हैं ये नमाज़ी पार्टियां सिर्फ गद्दारों के बरसीं पर।
राहुल, कजरी, सब के सब मातम मनाने दौड़ते हैं,
दलित शोषित के मसीहा हम ढिंढोरा ऐसा पीटते हैं।
जब चाहे गठजोड़ जिससे, अपने हित में करते हो,
हाय यह कहा उसने बस, चुनाव में आहे भरते हो।
जब चाहे जिधर अपने समर्थकों को जोत दिया,
बेइज़्ज़त करने वाले से कैसा रिश्ता जोड़ लिया।
नेता नहीं तुम बोझ बन चुके हो इस पावन धरती पर,
खरा नहीं उतरते हो तुम लगाए अपने ही शर्तों पर।
परती बनाना चाहते हो तुम आज़ाद,भगत की धरती पर,
ताज्जुब होता है देश की ऐसी ओछी राजनीति पर।