जिंदगी
प्यार की रुसबाइयाँ भी अजीज लगने लगी
जाने क्यों नफरत की आदत सहज लगने लगी
न लिखने का दिल करता है न पढ़ने का
हर वक़्त दिल को बगावत की बू आने लगी
कभी बरसती थी प्यार की बरसातें जमकर
क्या हुआ जो बूंदों को भी जिंदगी तरसने लगी
मैकदा तो नहीं थी उसकी प्यार भरी बातें
क्यों सुबहो शाम जिंदगी इस कदर बहकने लगी
माना कि दिल खाली जाम है उल्फत का
क्यों बेबसी प्यार की दिल को जलाने लगी
काश ………..
होता दिल भी एक आईना अदावत का
जाने क्यों उदासी जिंदगी को बहलाने लगी।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़