रेत है कहीं मुठ्ठी से फिसल न जाए
रेत है कहीं मुठ्ठी से फिसल न जाए
संभालो वक्त हाथ से निकल न जाए
बहार का मौसम साल भर नहीं रहता
आँखों में बसा लो मौसम बदल न जाए
देख ले चाहे दुनिया के तमाम रंग
ख्याल रहे के दिल तेरा मचल न जाए
गर खोना नहीं तुझे अपना वजूद
खुदा से मिल अभी गुजर ये पल न जाए
फानी है ये शरीर और झूठ है दुनिया
इनमे ही उलझ दूर कहीं असल न जाए
दुनियावी हसरतों का कोई अंजाम नहीं
जब तलक खुदी का तोडा महल न जाए
खुद को जान खुदा को जान जो लाफ़ानी है
इससे पहले के ज़िंदगी की सांझ ढल न जाए