ग़ज़ल – उस्ताद ज़रूरी है
मिल पायें न मिल पायें पर याद ज़रूरी है
थोड़ा ही सही फिर भी संवाद ज़रूरी है
रिश्तों का पौधा है ये सूख नहीं जाये
कुछ पानी ज़रूरी है कुछ खाद ज़रूरी है
घायल से मत पूछो है चोट लगी कैसे
सबसे पहले उसकी इमदाद ज़रूरी है
सुनना कि नहीं सुनना ये उसके ऊपर है
फिर भी उससे करना फ़रियाद ज़रूरी है
जो बात कही तुमने अच्छी होगी लेकिन
सबको समझाने को अनुवाद ज़रूरी है
ऊँचाई दिखानी है दुनिया को दिखा देना
उसके पहले गहरी बुनियाद ज़रूरी है
यों शेरो-सुखन सारा मौजूद क़िताबों में
पर उसको समझने को उस्ताद ज़रुरी है
— डॉ. कमलेश द्विवेदी
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