कलमबंदी
राज्यमंत्री जी जैसे ही पत्रकार सम्मेलन को संबोधित करके वापिस जाने के लिए कार में बैठे, आज के सम्मेलन के चित्र उनकी आंखों के आगे घूम रहे थे. ऐसा भी हो सकता है, यह उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था.
”अन्ना, आप कहना क्या चाहते हैं?” एक पत्रकार ने पूछा था.
”वही जो आप सुन रहे हैं.” मंत्री का छोटा-सा उत्तर था.
”आज आपका सुर कुछ बदला हुआ है.” एक और पत्रकार ने भड़ांस निकाली थी.
”ऐसा क्या बोल दिया मैंने?” मंत्री जी भी तुनक में थे.
”आप सब समझ रहे हैं सर, फिर भी हमसे साफ-साफ सुनना चाहते हैं, तो हम कह भी सकते हैं, पर आपको सुनकर शायद अच्छा नहीं लगेगा.”
”कहो-कहो, डरते क्यों हो?”
”डरना कैसा सर! डरते तो ऐसी बात हम कहते ही क्यों?” अन्य पत्रकार भी मुखर हो चले थे.
”आप दक्षिण भारत में बोल रहे हैं सर. तमिल और तेलुगू में ‘अन्ना’ का मतलब बड़ा भाई होता है. हम आपको सम्मान देने के लिए अन्ना कह रहे हैं और आप हैं, कि हमारी कलमबंदी करने पर तुले हुए हैं.”
”यह सब नहीं चलेगा. हमारी कलम आपको अन्ना भी लिख सकती है तो गन्ने की तरह निचोड़ भी सकती है. हम सच्ची बात कह सकते हैं, देश-हित की बात लिख सकते हैं, व्यक्ति विशेष के हित की बात हमारी कलम को कतई मंजूर नहीं है.”
फिर सारे पत्रकार उठकर चले गए थे. मंत्री जी भी बिना खाए-पिए बैरंग वापिस जा रहे थे.
जनतंत्र में कलमबंदी किसी को भी कतई पसंद नहीं होती. सभी जनता के सामने सच को प्रकट करना चाहते हैं. मंत्रियों और नेताओं को भी सोच-समझकर काम करना और बोलना चाहिए, ताकि कलमबंदी की नौबत ही न आए.