दुख पीड़ाओं के कारण पर
दुख पीड़ाओं के कारण पर
करते नही मनन।
केवल चिंता ही चिंता में
बीत रहा जीवन।।
जीवन का सुख जब से हमने
ढ़ूँढ़ा है भौतिकता में।
तब से हुई गिरावट भारी
मन की वैचारिकता में।।
मन में द्वेष लोभ है केवल
गायब है चिंतन…
केवल चिंता ही चिंता में
बीत रहा जीवन…
याद रहे की धन या दौलत
से आनंद नही मिलता।
कागज के फूलों से खुशबू
या मकरंद नही मिलता।।
देता है उल्लास हमेशा
बस उल्लासित मन…
केवल चिंता ही चिंता में
बीत रहा जीवन…
ध्येय भूलकर कृत्रिम सुख का
झूला झूल रहे हैं हम।
जीवन का जो सही लक्ष्य है
उसको भूल रहे हैं हम।।
धार रहे हैं धूलि ललाट पर
समझ उसे चंदन…
केवल चिंता ही चिंता में
बीत रहा जीवन…
सतीश बंसल
१३.०३.२०१८