माथे का चंदन बनी, दुर्भावों की धूल।
माथे का चंदन बनी, दुर्भावों की धूल।
पीपल आरोपित हुए, पूजित हुए बबूल।।
जाने कैसा हो गया, माली का व्यवहार।
फूलों को दुश्मन कहे, काँटों से है प्यार।।
सच्ची कविता के अधर, अगर रहेंगे मौन।
पीड़ाएं कमज़ोर की, कहो कहेगा कौन।।
मिथ्या अपनी जीत का, जितना करे प्रचार।
अंत काल हर हाल में, होगी उसकी हार।।
जिस दिन चले दहाड़ कर, सच्चाई के शेर।
मिथ्या के सारे किले, हो जायेंगे ढ़ेर।।
सत्ता का हो दंभ या, ताकत का अभिमान।
मादकता हर हाल में, करती है नुकसान।।
जो पालन करते नही, धर्म नीति सिद्धांत।
कट्टरता के पक्ष में, देते हैं दृष्टांत।।
जो पीढ़ी करती नहीं, पुरखों का सम्मान।
खो देती है एक दिन, दुनिया में पहचान।।
बंसल जीवन में मिले, गिनती के दिन चार।
जाना तय है एक दिन, काहे रहा बिसार।।
सतीश बंसल
१५.०३.२०१८