अधूरापन
जिन्दगी का
हर पहलू
लगता मुझे अधूरा
मिलकर
एकपल खुशी
कभी होता नहीं पूरा
क्या गम क्या हंसी है
हंसी कितनी सजी हैं
दुल्हन बनकर आती है
जनाज़ा तरह जाती है
कौन काटें ये दर्द
कैसे मीटे ये दर्द
आंसू बनकर निकले
तड़प बनकर मचले
इच्छाएं सीमाहीन
ख्वाब आशाहीन
चाहत की प्रबलता
सीमा पार
न कर सका
अधूरी आश
अधूरी प्यास
अधूरी जिन्दगी
अधूरी बंदगी
अधूरा रहा साथ
रह न सका पास
किसे अपना कहे
किसे पराया कहे
सब के सब
बराबर नजर आते
जिन्दगी से
मौत तक के सफर में
घूम-फिरकर
सिर्फ-
विचरण करता है
अधूरापन !!!
© रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’
रचना काल -06/03/2018
सायंकाल -08:36