कवि….
कवि जीता है अपनी कविताओं में
तमाम दुख औ’ दर्द, खुशियाँ औ’ गम
उकेरता है शब्दों के ढांचे में
और गढ़ता है जज्बातों का मर्म
एहसासों की गहरी स्याही से
लिखता है मन का अधूरापन
कभी विरह का रुदन, तो कभी
सावन का लहलहाता प्रेम
जो मुमकिन नहीं कहना लफ्जों से
देता उसे आवाज अपने शब्दों से
कवि जीता है अपनी कविताओं में….
लेता है जब एक बृहत आकार मौन सन्नाटा
मन के गहराईयों में
तब गूंजती है कोलाहल अंतर्मन में
मिले उसके भावों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
तब सहसा ही बेचैन हो उठती उंगलियाँ
चल पड़ते हैं कलम बेतहासा
रचने को जज्बातों की भाषा
तब होता है एक समृद्ध सम्वेदनाओं से तृप्त
मानव मन का सजीव चित्रण
कवि जीता है अपनी कविताओं में….