वर्तमान बिक्रम सम्वत का अद्भुत संदेश
बात नव वर्ष विक्रम सम्बत 2075 जो 18 मार्च’18 को प्रारम्भ होता है। आखिर क्या सन्देश अन्तर्निहित है इस नववर्ष के गर्भ में, मानवता के संदर्भ में। आईये जरा गौर तो करें हम अपने नजरिये से-
सबसे पहले जो अनाज क्रम से घड़े में पहले जाता है वह बाद में भी कर्म से ही निकलता है और जो सबसे बाद में जाता है वह सबसे पहले निकलता है। इसलिए, सबसे पहले विक्रम सम्बत का वर्ष 2075 पर गौर करें तो मूलांक 5 निकलता है । जो सन्देश देता है कि मानव सहित सम्पूर्ण सृष्टि पाँच तत्त्वों से बना है- क्षिति,जल, पावक, गगन समीरा। मिट्टी, जल, वायु, अग्नि और आकाश।
खुद शरीर में अनुभव करें। मांस-मज़्ज़ा आदि मिट्टी यानी पृथ्वी तत्व, रक्त मूत्र लार आदि-जल तत्व, किसी भी शरीर का गर्म रहना, अग्नि तत्व, आकाश यानी खाली जगह ही तब ही तो हवा का प्रवेश सम्भव है। इस तरह शरीर से सृष्टि तक पाँच तत्त्वों से बना है,स्वयं प्रमाण है।
इसके आगे फिर कभी चर्चाएं होंगी।
फिर इसके बाद मार्च का महीना यानी तीसरे महीने का 3। मतलब त्रिगुणात्मिका माया। सत रज तम। माया ही सृष्टि का उपादान कारण है और ईश्वर निमित्त कारण। क्योंकि किसी चीज के निर्माण के दो कारण होते है-एक उपादान कारण और दूसरा निमित कारण। समझने के उद्देश्य से मान लें कि- घड़े का निर्माण करना है तो कुम्हार और मिट्टी दोनों की आवश्यकता होगी। मिट्टी उपादान कारण है तो कुम्हार निमित्त कारण। वैसे ही माया उपादान कारण है तो ईश्वर निमित्त कारण। जो माया संसार के निर्माण में उपादान कारण है वही माया त्रिगुणात्मिका है। उस तीनो गुणों को भी समझना पड़ेगा।
और 3रा महीना मार्च हमारी समस्त मानव जाति का न किसी सम्प्रदाय विशेष का न किसी मजहब जाति वर्णों के व्यक्ति अशेष के तीन (3) अवस्थाओं की ओर इशारा करता है। जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति की ओर। इन तीन अवस्थाओं का गवाही कौन ? इन तीनों अवस्थाओं से जो अलग जो सत्ता है वही तो रब है, खुदा है, ईश्वर है, आत्मा है रूह है चाहे जो नाम दे लो नाम संज्ञावाचक है। तो व्याकरण से कहना चाहूँगा-
न ही संज्ञा हूँ मैं और न विशेषण ही
कहने भर को तो केवल सर्वनाम हूँ मैं
न राम-रहीम, न वाहे गुरु ही रहा कभी
जब भी रहा हूँ केवल अकेला ही रहा मैं
खैर, विषय को विस्तार न देते हुए अंत मे इस साल के शुरू होनेवाली तारीख पर गौर करते हुए केवल ये ही कहना चाहेंगे कि- इस तारीख के मूलांक को चाहे जिस किसी भी अंक से गुणा करने पर गुणनफल का मूलांक भी वही 9 आएगा जिस तारिख से यह नव वर्ष आरम्भ हो रहा है यानी तारीख 18 जिसका मूलांक 9 होता है। यह नौ अंक जहाँ भक्ति धारा में नवधा भक्ति के अंतिम परिणति के रूप उद्घोष करता है “जाको कछु न चाहिए सोई शाहंशाह।” की स्थिति, यानी संसार के सारी दायित्वों का निर्वहन करते हुए जीते जी श्रीरानी तक कामना रहित मोक्ष की अवस्था में जीने की प्रेरणा देता है वहीं “आत्मवत सर्व भूतेषु” देखने का नजरिया भी।
वैसे भी अंग्रेजी काल गणना के अनुसार वर्ष 18 और तारीख 18 मूलांक 9 को इंगित करते हुए भाईचारे का संदेश तो देता ही है। आप दूसरों को भी अपना बनाने की क्षमता खुद में जगाएँ। साथ ही मार्च का तीसरा महीना त्रिगुणात्मिका माया को। भाईचारा या “सियाराम मय सब जग जानी” की नजर पाने के लिए तीनों गुणों को जानना जरूरी है। सतोगुण से जहाँ अंत:करण और ज्ञानेन्द्रियाँ आँख, नाक, कान, जीभ और त्वचा। सबके अपने-अपने विषय भी हैं जैसे- रूप,रस, गन्ध, शब्द औऱ स्पर्श। वहीं रजोगुण से- कर्मेन्द्रियाँ और पांच प्राण- प्राण, समान उदान, अपान, व्यान तो तमोगुण से सम्पूर्ण शरीर का निर्माण।
इस तरह यह नव वर्ष हमें सन्देश देता है 9 बनो और सब रिश्ते निश्छल, निष्काम प्रेम से निबाहो। मानव हो तुम मानवता में पलो।
— स्नेही “श्याम”
गुरुग्राम, हरियाणा
9990745436