नफरत की आंधी
पल ही पल में,क्या से क्या हो जाता है,
इक प्यार करने वाला दिल,
शीतल ‘शबनम’ से आग का ‘शोला’ बन जाता है,
नफरत की आंधी में, ‘विवेक’ कहीं दूर भटक जाता है,
प्यार की महकती हुई मंद मंद ‘खुशबू’ सहम कर ठिठक जाती है, ,
और इस बेमुराद नफरत की आंधी में यह कहीं दूर छिटक जाती है,
प्यार के रास्ते पर चल रही सुखमयी पुरवाई, तूफ़ान बन कर–
दिलों के घरोंदों को तिनका तिनका कर उडा कर ले जाती है,
जुबान से बादल फटता है क्रोध का –कटु शब्दों का ज़हर बरसता है–
और यह नफरत की उफनती बाढ़ ,प्यारे रिश्ते भी बहा ले जाती है,
तूफान तो क्षणिक है, कुछ देर में थम जाएगा—
पर अपने ‘अवशेष’ तो ज़ख़्मी दिलों पर छोड़ जायेगा,
जो दिल के घरोंदे तिनका तिनका, कर दिए इस आंधी ने–
क्या उन्हें दोबारा फिर आबाद कर पायेगा ??
–जय प्रकाश भाटिया