साहित्य
साहित्य कोई बहस का मुद्दा नहीं ,
समाज का दर्पण है दोस्तो ।
प्रकृति का चिंतन है ,
प्रेम का चित्रण है ।
सदियों की प्यास है ,
महबूब का मंथन है ।
तम का अघ्ययन है ,
प्रकाश का विवरण है ।
इतिहास का अकिंचन है
भूगोल का आवरण है ।
प्रेमी का रुदन है ,
प्रेमिका का स्पंदन है ।
माँ का दुलार है ,
पिता का संगठन है ।
भाई का प्यार है ,
बहन का दुलार है ।
समाज की धार है ,
इच्छाओं की गागर है ।
जीवन का आधार है ,
रूढ़ियों पर प्रहार है ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़