गीतिका/ग़ज़ल

कभी तो दिन वो आएगा

कभी तो दिन वो आएगा, सभी के अपने घर होंगे।
मिलेंगी रोटियाँ सबको, न सपने दर-बदर होंगे।

मिलेंगे बाग खेतों से, न होगी बीच में खाई
पलायन गाँव छोड़ेंगे, सदय पालक शहर होंगे।

रखेंगे रास्ते पक्के, लगा सीने से गलियों को
बढ़ेंगे शुभ कदम जिस पथ, प्रगति के दर उधर होंगे।

जुड़ेगी धूप छाया से, विभाजन की मिटा रेखा।
चढ़ेंगे गाँव जब सीढ़ी, शहर भी हमसफर होंगे।

हवाएँ एक सी बहतीं, वही जल अन्न है सबका।
दिलों से दिल मिलेंगे,स्वाद भी साझे अगर होंगे।

जलेंगे दीप घर घर में,रहेगा पर्व हर मौसम।
पपीहे मोर गाएँगे, मधुर कोकिल के स्वर होंगे।

विफल हर चाल दुश्मन की, करेंगे देशप्रेमी सब।
हमारे दस्तखत जग के, फ़लक पर पुरअसर होंगे।

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]