कभी तो दिन वो आएगा
कभी तो दिन वो आएगा, सभी के अपने घर होंगे।
मिलेंगी रोटियाँ सबको, न सपने दर-बदर होंगे।
मिलेंगे बाग खेतों से, न होगी बीच में खाई
पलायन गाँव छोड़ेंगे, सदय पालक शहर होंगे।
रखेंगे रास्ते पक्के, लगा सीने से गलियों को
बढ़ेंगे शुभ कदम जिस पथ, प्रगति के दर उधर होंगे।
जुड़ेगी धूप छाया से, विभाजन की मिटा रेखा।
चढ़ेंगे गाँव जब सीढ़ी, शहर भी हमसफर होंगे।
हवाएँ एक सी बहतीं, वही जल अन्न है सबका।
दिलों से दिल मिलेंगे,स्वाद भी साझे अगर होंगे।
जलेंगे दीप घर घर में,रहेगा पर्व हर मौसम।
पपीहे मोर गाएँगे, मधुर कोकिल के स्वर होंगे।
विफल हर चाल दुश्मन की, करेंगे देशप्रेमी सब।
हमारे दस्तखत जग के, फ़लक पर पुरअसर होंगे।
-कल्पना रामानी