कविता

“कुंडलिया”

 

मोती जैसे अक्षर हैं, सुंदर शब्द सुजान

भाव मनोहर लिख रही, कोरे पन्ने मान

कोरे पन्ने मान, बिहान न हो प्रिय तुम बिन

सपने दिन अरु रात, विरह बढ़ता है दिन दिन

कह गौतम कविराय, आँख असुवन झर रोती

यह पाती नहिं वैन, नैन तुम मेरे मोती॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ