लघुकथा

अवसादग्रस्त

अवसाद ग्रस्त

रमाशंकर मध्यम वर्गीय गृहस्थ थे । सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके थे । शहर के सबसे महंगे इलाके में उनका आलीशान बंगला था । उनकी इकलौती बेटी रमा ने अपने पसंद के लड़के से शादी करने की इच्छा जताई लेकिन उन्होंने अपने खानदान की इज्जत व मर्यादा का वास्ता देकर उसे अमर से विवाह न करने के लिए मना लिया ।
 समीर एक रईस व्यवसायी जमनादास का इकलौता बेटा था । बेटी के बेहतर भविष्य की चाह में रमाशंकर ने जमनादास के भारीभरकम दहेज की मांग को स्वीकार करते हुए रमा की शादी समीर से कर दी ।
 शादी के कुछ दिनों तक सब ठीक ठाक रहा लेकिन मध्यम वर्गीय समाज में पली बढ़ी व संस्कारवान युवती रमा अपनी अति आधुनिक ससुराल वालों की मानसिकता से खुद को आत्मसात नहीं कर पाई ।
उसकी पसंद को लेकर उस पर तंज कसे जाते तो कभी सरेआम भिखारी घर से आई है कहकर उसका अपमान किया जाता । दहेज में आये हुए सामानों की गुणवत्ता पर भी उनके घटिया होने का तंज कसा जाता । समीर का देर रात शराब पीकर घर आना और फिर शराब के नशे में कभी कभी रमा पर हाथ उठा देना भी अब सामान्य सी बात हो गयी थी ।
एक दिन देर रात समीर के साथ आकर्षक व्यक्तित्व का कोई प्रौढ़ घर आया था । समीर ने उसका परिचय कराते हुए बताया वह किसी कंपनी का बहुत बड़ा अधिकारी था जिसके एक हस्ताक्षर से समीर को करोड़ों का फायदा हो सकता था । अर्थपूर्ण निगाहों से रमा की तरफ देखते हुए समीर ने उसे बताया ” और उसे खुश करके वह हस्ताक्षर हासिल करने की जिम्मेदारी तुम्हारी है । “
 कोई विरोध दर्ज न करते हुए रमा सबके भोजन कर लेने के बाद चुपके से घर से बाहर निकल आयी और किसी तरह अपने पिता के घर पहुंच गई ।
रमा की रामकहानी सुनकर रमाशंकर काफी क्षुब्ध हुए लेकिन जमनादास और समीर के धनबल व रसूख की ताकत को पहचानते थे । चाहकर भी वह रमा के लिए अब कुछ नहीं कर सकते थे । समीर ने रमा पर बहुत सारे जेवर चुरा का भागने का आरोप लगाते हुए तलाक की अर्जी अदालत में लगा दी थी । बेबस व लाचार रमाशंकर के मन में उठ रहे गुस्से ने धीरे धीरे मानसिक अवसाद का रूप धर लिया था । अपने बंगले के लॉन में बैठे रमाशंकर अक्सर सोचा करते ‘ यदि मैंने रमा की बात मान ली होती तो आज उसे यह दिन नहीं देखना पड़ता शायद । तो क्या हुआ अमर ईतना अमीर नहीं था ? लेकिन रमा को ईज्जत की जिंदगी तो दे ही सकता था । ‘

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “अवसादग्रस्त

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, अब पछताए क्या होत है! अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

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