नई इबारत
कंचन आज सचमुच कंचन बनकर निखरी है. कड़े परिश्रम के बाद राष्ट्रीय स्तर की पैरा ऐथलीट बनकर 2017 में उन्होंने राष्ट्रीय पैरा ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप में तीन स्वर्ण पदक जीते. जीत की खुशी के उपरांत कुछ सहज होने के बाद वह फिर अतीत की स्मृतियों में खो गई.
2008 से पहले वह रावल इंटरनैशनल स्कूल में प्राथमिक कक्षा के बच्चों को पढ़ाती थीं, लेकिन निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर हुए एक हादसे में कंचन ने अपना एक हाथ खो दिया. स्पाइनल इंजरी की वजह से कमर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया. जब पता लगा कि पूरी जिंदगी वीलचेयर पर रहना पड़ेगा तो अवसाद का शिकार हो जाना स्वाभाविक था. उसने करीब 5-6 साल तक अपने आप को एक कमरे में एक तरह से बंद रखा और बहुत कम समय ही परिवार के साथ बिताती थी. एक बात अच्छी हुई, कि वह कुछ-न-कुछ पढ़ती रहती थी. एक दिन उसने पढ़ा-
”ज़िंदगी एक शतरंज है,
हर शह को मात नहीं समझना चाहिए,
बाज़ी वही हारता है जो, हिम्मत हार जाता है.”
बस यहीं से उसकी जिंदगी बदल गई. उसने आत्मचिंतन के बाद भविष्य में आने वाली परेशानियों का सामना करने के लिए खुद को तैयार किया. सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेने के लिए मिशन जागृति से जुड़ीं और स्कूलों में जाकर बच्चों को जागरूक करने के साथ ही स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, पर्यावरण बचाओ जैसे अभियानों का भी हिस्सा बनीं. दो साल पहले राजा नाहर सिंह स्टेडियम में ऐथलेटिक्स के कोच नरसी राम से उनकी मुलाकात हुई. उन्होंने कंचन को प्रेरित किया तो वह भाला फेंक, चक्का फेंक और गोला फेंक खेलों का प्रशिक्षण लेने लगी. यहां उनके जीवन एक नई दिशा देने में कोच नरसी राम और प्लैटफॉर्म मुहैया कराने में हरियाणा पैरालिंपिक कमिटी के महासचिव गिर्राज सिंह ने बहुत सहयोग किया. पूरे परिवार के सहयोग से वह आगे बढ़ती गई और आज 3 तीन स्वर्ण पदक उसकी झोली में थे. उसने अपनी भावनाओं को कविता में ढाला-
‘यह मेरे जीवन की अब तक की कहानी है,
कल था बचपन तो आज आई जवानी है,
तब थीं खुशियां तो आज आई परेशानी है,
फिर भी हार न मैंने मानी है,
मैंने भी जीवन में कुछ करने की ठानी है,
दुनिया में अपनी अलग पहचान बनानी है.’
कविता की ये भावनाएं ही कंचन की जिंदगी की नई इबारत बनीं. 2020 में पैरा ओलिंपिक होने वाले हैं. उसमें हिस्सा लेकर देश के लिए स्वर्ण पदक जीतना कंचन का ख्वाब है.
फरीदाबाद शहर की जवाहर कॉलोनी में रहने वाली कंचन लखानी उन लोगों के लिए मिसाल हैं, जो जरा-सी तकलीफ में भी घबरा जाते हैं। भयानक हादसे से तन अपाहिज होने पर भी मन की मजबूती और कड़े परिश्रम के बाद राष्ट्रीय स्तर की पैरा ऐथलीट बनकर 2017 में उन्होंने राष्ट्रीय पैरा ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप में तीन स्वर्ण पदक जीते। जिसे दुनिया कमजोरी समझती थी, उसे उन्होंने चुनौती के तौर पर लिया और दुनिया के सामने एक उदाहरण बनकर सामने आईं। कंचन कहती हैं कि जिसे दुनिया ‘सामान्य’ होना कहती है, उस जिंदगी में शायद यह उपलब्धियां नहीं मिलतीं, लेकिन रेल हादसे में जीवन को नई दिशा दी और बताया कि कैसे बेफिकर होकर जीते हुए अपने मुकाम को हासिल किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि 2020 में पैरा ओलिंपिक होने वाले हैं। उसमें हिस्सा लेकर देश के लिए स्वर्ण पदक जीतना कंचन का ख्वाब है।