माता का देवत्व
माता सच में धैर्य है,लिये त्याग का सार !
प्रेम-नेह का दीप ले, हर लेती अँधियार !!
पीड़ा,ग़म में भी रखे,अधरों पर मुस्कान !
इसीलिये तो मातु है,आन,बान औ’ शान !!
माता तो है श्रेष्ठ नित ,हैं ऊँचे आयाम !
इसीलिये उसको “शरद”, बारम्बार प्रणाम !!
नारी ने नर को जना,इसीलिये वह ख़ास !
माता पर भगवान भी,करता है विश्वास !!
माता से ही धर्म हैं,माता से अध्यात्म !
माता से ही देव हैं,माता से परमात्म !!
माता से उपवन सजे,माता है सिंगार !
माता गुण की खान है,माता है उपकार !!
माती शोभा विश्व की,माता है आलोक !
माता से ही हर्ष है,बिन नारी है शोक !!
माता फर्ज़ों से सजी,माता सचमुच वीर !
साहस,कर्मठता लिये,माता हरदम धीर !!
जननी की हो धूप या,भगिनी की हो छांव !
नारी ने हर रूप में,महकाया है गांव !!
माता की हो वंदना,निशिदिन स्तुति गान !
माता के सम्मान से,ही है नित उत्थान !!
— प्रो. शरद नारायण खरे