मुक्तक/दोहा

सौन्दर्य के दोहे

दर्पण ने नग़मे रचे,महक उठा है रूप !
वन-उपवन को मिल रही,सचमुच मोहक धूप !!

इठलाता यौवन फिरे,काया है भरपूर !
लगता नदिया में ‘शरद’,आया जैसे पूर !!

उजियारा दिखने लगा,चकाचौंध है आंख !
मन-पंछी उड़ने लगा,नीलगगन बिन पांख !!

अधरों पर लाली खिली,गाल हो गये लाल !
नयन नशीले देखकर,आने वाला काल !!

अंगड़ाई,आवेश है,मस्ती है,उन्माद !
उजड़ेगा या अब ‘शरद’ ,हो कोईआबाद !!

बासंती परिवेश है,बासंती है भाव !
वह ही खुश प्रिय का नहीं,जिसको आज अभाव !!

मन बौराया,तन हुआ,मादकता- पर्याय !
अंतरमन रचने लगा,गीतों का अध्याय !!

नगरी है ये नेह की,दिल मिलते बेचैन !
प्यासे हैं,सबके अधर,नयन बहुत बेचैन !!

रूप,गंध,रस,प्रीत है,पलता है अनुराग !
सबके उर गाने लगे,मिलन- प्रणय के राग !!

— प्रो.शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]