अन्य

कुछ छः

1.

कौन-सा अपनापन जता रहे हो भाई साहेब !!
मेरी पीठ का खून अब तक आपके हाथ पर है।

2.

भीड़ बहुत है रिश्तों की,मगर सच्चाई से दूर।
साथ दें बातें बस,उपहास होता देखते जरूर।।

3.

मौत के पीछे झूठ देखी,देखा पाखंड का आकार।
दोमुंहे साँप सब दिखते,दुख से ना कोई सरोकार।

4.

बैठकर करें चौपाल सब,करें चुगलियां रोज।
कबीरा जरा भनक लगी,हो रही सत्य की खोज।।

5.

आविर्भाव हो रहा शब्दों का,कपाट खोले है ज्ञान।
पंक्ति-पंक्ति बनती कविता है,बस यही है पहचान।।

6.

कबीरा घट-घट पानी पिया,बुझी नहीं रे प्यास।
शब्दों के कुएँ में डुबकी, बस यही आखिरी आस।।

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733