“गज़ल”
हम तेरे चाहने के सिवा आ गए
जिंदगी जिंदगी को लिवा आ गए
कितनी राहें घुमाई भुले भान को
गम न कर आदमी को बुला आ गए॥
बजती नित पाँव पायल जिसके वहाँ
उसको उसके ही आँगन बिठा आ गए॥
हमने जाना नहीं क्या हुआ क्या किया
किसने अनहद नचाया भुला आ गए॥
देखो रागें वही फिर न तुम छेड़ना
तर कानों की हवा थी सुना आ गए॥
आओ बैठो सुनाओ तुम सु रागनी
वीणा नव तार फिर मन मना आ गए॥
गौतम तेरे बिना कब गया बाग में
कब वो कलियाँ खिली कब फुला आ गए॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी