गीतिका/ग़ज़ल

“गज़ल”

हम तेरे चाहने के सिवा आ गए

जिंदगी जिंदगी को लिवा आ गए

कितनी राहें घुमाई भुले भान को

गम न कर आदमी को बुला आ गए॥

बजती नित पाँव पायल जिसके वहाँ

उसको उसके ही आँगन बिठा आ गए॥

हमने जाना नहीं क्या हुआ क्या किया

किसने अनहद नचाया भुला आ गए॥

देखो रागें वही फिर न तुम छेड़ना

तर कानों की हवा थी सुना आ गए॥

आओ बैठो सुनाओ तुम सु रागनी

वीणा नव तार फिर मन मना आ गए॥

गौतम तेरे बिना कब गया बाग में

कब वो कलियाँ खिली कब फुला आ गए॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ