लघुकथा

सांत्वना

उनकी पत्नी सुन नहीं सकती थीं और उन्हें आपसी संवाद करने में बहुत दिक्कत होती थी. कुछ समय बाद पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ संकेतों में बात करने लगे. एक दिन वह पत्नी के साथ संकेतों से बात कर रहे थे, तभी उनका ध्यान माबेल के कानों की तरफ गया। वह उनके कानों को ध्यान से देख रहे थे. 

 

‘ए जी, कान में क्या देख रहे हो?’पत्नी संकेत से कान की ओर इशारा करके बोलीं.

 

‘सोच रहा हूं कि क्या कोई ऐसी मशीन बन सकती है जो सुनने में मदद कर सके? यदि सुनने वाली मशीन बन गई तो फिर मैं और तुम आराम से बातें कर पाएंगे.’ पति का जवाब था. 

 

पत्नी मुस्कुराकर अपने काम में लग गई, पति अपनी धुन में आविष्कार में जुट गए. खाना-पीना भूलकर वे नित नवीन प्रयोग में लग गए. धुन की धनक से मशीन बन गई. वह मशीन सुनने में मदद करने वाली तो न बन सकी, हां उससे टेलीफोन की खनक जरूर आई. सारी दुनिया खुश थी, पति की निराशा पत्नी से छुपी न रह सकी. अलेक्जेंडर ग्राहम बेल की पत्नी माबेल गारडीनर ने पति को सांत्वना देते हुए संकतों में माबेल बोलीं, ‘जिस तरह आपने टेलीफोन के सिद्धांत का आविष्कार कर दिया है, उसी तरह एक दिन सुनने की मशीन का आविष्कार भी अवश्य हो जाएगा.’ माबेल की बात सत्य सिद्ध हुई. आज सुनने की मशीन के सिद्धांत का आविष्कार हो चुका है और अनेक बधिर व्यक्ति उसका लाभ भी उठा रहे हैं.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “सांत्वना

  • लीला तिवानी

    7 मार्च 1875 को ऐलेक्जैंडर ग्रैहैम बेल ने टेलीफोन का आविष्कार किया था. अलेक्जेंडर ग्राहम बेल के टेलीफोन के आविष्कार ने जीवन को दूरी पर बैठे लोगों से संवाद को सुगम बना दिया और हमारा समय बचाने के साथ-साथ जीवन को सुविधामय बना दिया. उनकी लगन और शुभ संकल्प को हमारे कोटिशः सलाम. उनकी पत्नी की सांत्वना के भाव को भी हमारे कोटिशः सलाम.

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