जागो दलितों जागो।
बुद्धू चमार का बेटा चेथरु आज घर को सर पर उठा लिया है। आज तक इतने गुस्से में उसे मैंने तो कभी नहीं देखा था। आम तौर पर वह बहुत सामान्य रहता है। उसे राजनीति से कोई दूर दूर तक का नाता नहीं रहा है। वह सिर्फ पढ़ने, थोड़ी देर दोस्तों के साथ खेलने और घर के काम में ही अपने को सीमित रखता है। कालेज पढ़ कर सरकारी नौकरी की तलाश कर रही है। वह बहुत स्वाभिमानी है। कई बार आरक्षण की सहायता से उसे नौकरी मिलने का अवसर भी मिला। लेकिन वह आरक्षण का घोर विरोधी है। वह अपने मेहनत और ईश्वर पर विश्वास करता है। लेकिन उसका बाप आरक्षण समर्थक एवं राजनीति में भी इच्छुक रहता है। मैंने जब चेथरू से उसके गुस्से का कारण पूछा तो वह पहले तो बताना ही नहीं चाहता था। लेकिन मेरे बार बार पूछने पर जो कारण बताया उसे सुन मेरे होश उड़ गए।
कहने लगा – पिताजी उस दल के समर्थक हैं जो दलित शोषित पिछड़ों के हक की बात करती है। यह मुझे बहुत अच्छा लगता है। मैं भी उनको ही पसंद करता था। मैं राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं रखता हूं। लेकिन वह कमजोर वर्ग की आवाज बुलंद करती है, यह जानकार मैं उन्हें पसंद करता था। लेकिन अब नहीं। इस बात पर मैंने यह तो ठीक है, पर झगड़े की वजह क्या है। उसने कहा पिताजी का कहना है कि मैं बसपा सुप्रीमो मायावती के उम्मीदवार को ही वोट दूं। यह तो ठीक नहीं है। मैं व्यस्क हूं। मेरे पास सोचने समझने की क्षमता है। अपना भला बूरा पहचान कर सकता हूं। इसलिए झगड़ा हुआ है। मैंने कहा चेथरू उनको वोट देने में हर्ज क्या है। आखिर तुम भी उनके नेतृत्व को पसंद करते थे। फिर अचानक नापसंद या वोट ना देना। यह मेरे समझ में नहीं आ रहा है। चेथरू ने इस पर कहने लगा- चचा मैं उन्हें पसंद करता था क्योंकि वे हमारे आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, एवं सम्मान और हक के बारे में बोलती थी। लेकिन अब उनका मुखौटा उठ चुका है। आप ही बताइए अगर मायावती दलितों के शुभचिंतक होती तो क्या अखिलेश से गठबंधन करती। मुझे तो नहीं लगता। असल में सत्ता के भोगी है। अगर मायावती या उनके गठबंधन के साथी अखिलेश यादव राज्यसभा में जया बच्चन की जगह अंबेडकर को जिताते। हाल ही में उत्तर प्रदेश के लोकसभा उपचुनाव में बसपा समर्थकों ने सपा उम्मीदवारों को अपना मत दिया था। अखिलेश और मायावती दोनों दलितों शोषितों के हक की लड़ाई की बातें कर रहे हैं। आप ही बताइए- क्या अंबेडकर दलित नहीं थे। फिर उनको जराज्यसभा में क्यों नहीं जिताया। जया बच्चन एक महिला नेत्री है। लेकिन उनका योगदान क्या है भारतीय राजनीति में या उत्तर प्रदेश की राजनीति में बताइए। इसी बात पर कल से ही घर में बहस छिड़ी हुई है। क्या यह दलित का शोषण नहीं है। देश की सारी राजनीतिक दल महागठबंधन करने की तैयारी में हैं। यह अच्छा पहल है। ये सभी एकता और अखंडता के उदाहरण बनेंगे। लेकिन यह एकता सिर्फ इसलिए कि एक व्यक्ति को हराना है। वह व्यक्ति जिसको अमेरिका जैसे विकसित एवं शक्तिशाली देश को झुककर अपने देश के दौरा का निमंत्रण देना पड़ा। क्या उस व्यक्ति के लिए जो हमारे प्रतिद्वंद्वी देश पाक को दुनिया के सामने नीच, आतंकवादी संगठन का देश लगभग घोषित करा दिया। उस व्यक्ति के लिए महागठबंधन जिसके अमेरिका दौरे के दौरान वहां के राष्ट्राध्यक्ष उनके स्वागत में प्रोटोकाल तोड़कर आगे बढ़े।
उसी अमेरिका के दौरे पर गये पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के कपड़े उतार कर सुरक्षा जांच की जाती हैं। क्या उस व्यक्ति के लिए जिसके शासनकाल में घोटालेबाज देश छोड़कर भागने को मजबर है। हां एक गलती उनकी भी है कि वे घोटाले उजागर करने के साथ-साथ उन्हें गिरफ्तार कर जेल में भी डालें। बस यहीं कथन था मेरा बाबूजी से और वे आग बबूला हो गए। फिर मुझे भी गुस्सा आया और झगड़ा हो गया। मेरे बाबूजी ने ढकोसला करने वालों के लिए अपने बेटे को भी भूल गए। मुझ पर हाथ उठाया। मैं नहीं कह रहा कि आप किसको समर्थन करें या ना करें।
क्या आपको नहीं लगता कि हमें और अधिक जागरूक होने की जरूरत है। अपने इच्छानुसार मताधिकार एवं समर्थन करना चाहिए। आज मैं नतमस्तक हो गया।
— संजय सिंह राजपूत