गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल- अगर तू है तो ये दुनियाँ सलामत देख लेते हैं

छुपी हो लाख पर्दों में मुहब्बत देख लेते हैं ।
किसी चहरे पे हम ठहरी नज़ाकत देख लेते हैं ।।

तेरी आवारगी की हर तरफ चर्चा ही चर्चा है ।
यहां तो लोग तेरी हर हिमाक़त देख लेते हैं ।।

चले आना कभी दर पे अभी तो मौत बाकी है ।
तेरे जुल्मो सितम से हम कयामत देख लेते हैं ।।

बड़ी मदहोश नजरों से इशारा हो गया उनका ।
दिखा वो तिश्नगी अपनी लियाकत देख लेते हैं ।।

खबर तुझको नहीं शायद तेरी उल्फत में हम अक्सर ।
जमाने भर के लोगों की हिदायत देख लेते हैं ।।

मेरे अहसास का अंदाज तुझको है कहाँ साकी ।
अगर तू है तो ये दुनियाँ सलामत देख लेते हैं ।।

परेशां हो के गुजरे हैं इसी कूचे से हम भी जब।
तुम्हारी मुस्कुराहट में किफ़ायत देख लेते हैं ।।

गज़ब अंदाज़ है उनका गज़ब दरिया दिली उनकी ।
रिअाया के लिए वो भी रिआयत। देख लेते हैं ।।

झटक के जुल्फ वो चलते अदाएं हैं बड़ी क़ातिल ।
हम उनकी आँख की अक्सर शरारत देख लेते हैं ।।

हसीनों से सँभल कर तो यहाँ चलना है मजबूरी।
यहाँ मासूमियत में हम सियासत देख लेते हैं ।।

बहुत बेचैन दिखते हैं ये दीवाने चमन में जब ।
तुम्हारे हुस्न में होती इज़ाफ़त देख लेते हैं ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]