गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – यूँ ही तमाम उम्र कटी बेख़ुदी के साथ

जब से गये हैं आप किसी  अजनबी के साथ।

यूँ  ही  तमाम उम्र  कटी  बेखुदी   के  साथ ।।

 

कुछ वक्त आप  भी  तो  गुजारें   मेरे  करीब ।

मत  जाइए  जनाब  अभी  बेरुखी  के साथ ।।

 

कहने  लगे  है  लोग  जिन्हें   माहताब   अब ।

मुझको मिले कहाँ वो कभी रोशनी के साथ ।।

 

है मुतमइन ही कौन यहां ख्वाहिशों के बीच।

लाचारियाँ दिखीं है बहुत आदमी के साथ ।।

 

तन्हाइयों  का  वक्त  भी  मिलना  मुहाल है ।

चलती  है रोज फिक्र यहां जिंदगी के साथ ।।

 

गम  से निज़ात कौन अभी  पा सका हुजूर ।

रहते तमाम लोग यहाँ  मयकशी  के  साथ ।।

 

डूबा  हुआ   है   शह्र  अना  के  खुमार    में ।

मिलते  कहाँ  हैं  लोग यहां बन्दगी के साथ ।।

 

मफ़हूम  है जुदा ये ग़ज़ल  भी  है कुछ  जुदा ।

शायद कलम चली है कोई ताजगी के साथ ।।

 

खिलने का वक्त कौन दे भौरे हैं बद मिजाज ।

क्या हो रहा है आज चमन में कली के साथ ।।

 

यूँ   तो   शराब   खूब  बटी  मैकदे  में  आज ।

होती  नही  नसीब  उन्हें  तिश्नगी  के  साथ ।।

 

         — नवीन मणि त्रिपाठी 

 

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com