मानव बनकर दिखलाएं हम
(तर्ज़- वह शक्ति हमें दो दयानिधे कर्त्तव्य मार्ग पर डट जाएं——)
हैं मानव तेरी दुनिया के, मानव बनकर दिखलाएं हम
ऐसा वर दो हे नाथ हमें, जग हेतु कुछ कर पाएं हम-
हम सरिता हैं तेरे सागर की, हम लहरें हैं तेरी सरिता की
ऐसा वर दो हे नाथ हमें, खुशहाली लहरा पाएं हम-
हम सुमन हैं तेरे उपवन के, हम कलिकाएं तेरी बगिया की
ऐसा वर दो हे नाथ हमें, संसार को महका पाएं हम-
हम शशि की शीतलता भगवन, हम किरणें हैं प्रभु सविता की
ऐसा वर दो हे नाथ हमें, संसार को चमका पाएं हम-
हम तितलियां हैं तेरे कुंजों की, हम कोकिल हैं अमराई की
ऐसा वर दो हे नाथ हमें, तेरे ही गुण गा पाएं हम-
हम इच्छाएं तेरे अंतर की, हम उमंगें हैं अभयंकर की
ऐसा वर दो हे नाथ हमें, जग को निर्भय कर पाएं हम-
हे प्रभुवर दया के सागर,
सब गुण आगर, ज्ञान उजागर,
जब तक जीयूं, हंस-हंसकर जीयूं ,
ज्ञान-सुधारस अमृत पीयूं,
छोड़ूं लोभ-घमंड-बुराई,
चाहूं सब की नित्य भलाई.
जो करना सो, अच्छा करना,
फिर दुनिया में किससे डरना !
हे प्रभु, मेरा मन हो सुंदर, वाणी सुंदर,
हे प्रभु दया करना.