स्वीकार्यता
आज 80 साल के देवदास ने 76 साल की मगडु बाई से शादी रचाई. मगडु बाई 48 साल तक उनकी लिव-इन पार्टनर रही हैं. पूरे गांव में यह शादी आकर्षण का केंद्र रही. देवदास को कुछ दिन पहले की बात याद आ रही थी.
”पापा, आप मां से विधिवत शादी कर लीजिए न!” अपने पैतृक निवास में मगडु के साथ रह रहे देवदास से बेटे अर्जुनलाल ने मनुहार की.
”क्या बात कर रहे हो बेटे, ऐसा कैसे हो सकता है!” देवदास के चेहरे पर चिंतन की रेखाएं थीं.
”हो क्यों नहीं सकता पापा, आप इतने साल से मां के साथ रह भी तो रहे हैं न! मेरी बड़ी इच्छा है, कि आप दोनों के रिश्ते को स्थानीय रीति-रिवाजों के मुताबिक सामाजिक स्वीकार्यता और ‘न्यायवता’ मिले. पापा, प्लीज़ मान जाइए न!” बात पूरे परिवार के सामने हो रही थी. सबके कहने पर शादी की तैयारियां शुरु हो गईं.
पहली पत्नी की रजामंदी से शादी को न्यायावता तो मिल सकती है, लेकिन स्थानीय रीति-रिवाजों के मुताबिक सामाजिक स्वीकार्यता के लिए कुछ खास करना पड़ेगा. सो ‘भंजन’ की प्रक्रिया पूरी की गई. भंजन यानी दूल्हे का परिवार दुल्हन के घर जाता है और वर पक्ष की ओर से 50 किलो और वधू पक्ष की ओर से 10 किलो चावल देकर आपस में मिलाया जाता है और इसे पकाकर मेहमानों को परोसा जाता है.
देवदास इस बारे में खुशकिस्मत रहे, कि दोनों ही पत्नियों ने आपस में कोई ऐतराज नहीं जताया और बात करती रहीं. पहली पत्नी की तबियत ठीक होती तो वह भी इस शादी में शामिल होतीं.
सामाजिक स्वीकार्यता और ‘न्यायवता’ मिलने के कारण देवदास और मगडु बाई के साथ-साथ सारा परिवार प्रसन्न है.
लीला बहन , यह सच्ची कहानी बहुत अछि लगी , 80 साल के देवदास ने 76 साल की मगडु बाई से शादी रचाई, हमारी भी उन को वधाई हो .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. हमें भी इस बात की खुशी हुई, कि भारत में भी अब सोच बदल रही है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
इस शादी में दूल्हे की प्रथम पत्नी की सहमति और पूरे गांव की सहभागिता रही. यह शादी उनके बेटे अर्जुनलाल के आग्रह पर सामाजिक स्वीकार्यता और ‘न्यायवता’ मिलने के लिए आयोजित की गई थी.