गगनांगना छंद [सम मात्रिक]
विधान – 25 मात्रा, 16,9 पर यति, चरणान्त में 212 या गालगा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत
आ भी जाओ अब सपने में, मधुमय यामिनी
मत तरसाओ पिय आँगन में, गाए रागिनी।
लगे न आँख झाँकती साया, तकती आसमाँ
विरहन बनी निराली माया ,रहती यादमाँ।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी