लघुकथा

“वैशाख की वैशाखी”

अंदाजा लगाना मुश्किल है कि किसने किसको कब और कैसे मूर्ख बनाया होगा। मार्च यानी चैत्र माह हिसाब-किताब का महीना है कर लेने देने के साथ ही साथ कर चोरी के रसिया तरह-तरह के फार्मूले लेकर बाजार में मार्च की अनबुझी टोकरी में अपना सौदा सजाकर कर मार्च का अजूबा फल बेंच रहे हैं जिसमें न स्वाद है न सुगंध है पर बिकता खूब है। सीजन का हश्र देखते ही बनता है हर लोग मार्च को माथे पर उठाए हुए इस बात से अंजान रहते हैं कि अप्रैल यानी वैशाख महीना जो वैशाख नंदन के खुश होने का महीना है। वह भी अपना फूल लेकर तरह तरह के नुख्से आजमा कर मूर्ख बनाने के लिए पहली तारीख यानी अप्रैल फूल का इंतजार कर रहा है। संयोग से आज वहीं दिन है सुबह से शाम तक आज बनाने का दिन है। कौन किसको कैसे बनाएगा यह उसके उस विवेक पर निर्भर करता है जिस विवेक को शायद यह भी नहीं पता है कि मूर्ख दिन के लिए इस दिन का चयन उन महामूर्खों ने किया है जो अपनी मूर्खता को ही विवेक शील मानने के लिए बाध्य हैं और गर्व से कहते है कि बना दिया न तुमको अप्रैल फूल……..फेसबुक और वॉट्सऐप तो आज निहाल ही हो जाएगा अपने मूर्खों के नए नए कारनामें देखकर……जय हो वैशाख नंदन की……..बनो बनाओ और मौज में रहो पर वैशाखी को सम्हाले रखना, वैशाखी को हिलने मत देना मित्रों……फसल पक चुकी है।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ