हुनर
शीतल-मंद-सुगंधित बयार से बतियाता समीर एक जंगल से गुजर रहा था. एक पेड़ पर मधुमक्खी के छत्ते को देखकर मधुमक्खी से बतियाने लगा- ”मधुमक्खी रानी, तुम इतनी मेहनत करके शहद बनाती हो, पर तुम्हारा शहद तो औरों के ही काम आता है, फिर तुम इतनी मेहनत क्यों करती हो?”
”शहद बनाना हमारा हुनर है, अगर हम शहद नहीं बनाएंगी, तो हमारा हुनर ही सुप्त-लुप्त हो जाएगा.”
कमाई कम होने के कारण बहुत दिनों से अपने कशीदाकारी के हुनर से निराश संजय नये जोश से अपने हुनर को निखारने में लग गया.
बहुत अछि कहानी लीला बहन .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
सच है, कमाई कम होने पर निराश होने के बजाय, उसका कारण ढूंढकर अपने हुनर को निखारने में ही अपना भला है.
हौसला मत हार गिरकर ऐ मुसाफिर,
ग़र दर्द यहां मिला है, तो दवा भी यहीं मिलेगी.