मकसद
सेवानिवृत्ति के बाद प्रायः हर व्यक्ति का मकसद होता है किसी अन्य उपाय से धनोपार्जन करना या फिर आराम करना और अपने शौक पूरे करना. ढाई दशक पहले फौज से सेना के सेवानिवृत्त कैप्टन आद्या प्रसाद दुबे अपने को सेवानिवृत्त कहलाना पसंद नहीं करते हैं, इसलिए उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया. उन्होंने अपने समय का सदुपयोग करने का एक नया तरीका निकाला. आद्या ने सेना से मिलने वाली पेंशन से अपने पैतृक गांव चौरीचौरा के मिठाबेल ग्राम के प्राथमिक स्कूल के बंजर खेल मैदान में युवाओं को भर्ती के लिए प्रशिक्षण देना शुरू किया.
उन्होंने मुफ्त में सेना में भर्ती कराने के लिए एक सेंटर खोला और तीन हजार से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षण देकर सेना, नेवी, एनडीए, एयरफोर्स के साथ यूपीपी सहित कई राज्यों के फोर्स में भर्ती कराया. दो दर्जन से ज्यादा लड़कियां भी पूर्वांचल के इस द्रोणाचार्य की पाठशाला से निकल फोर्स जॉइन कर चुकी हैं. इन सभी युवा-युवतियों का मकसद है- देश-सेवा के लिए सेना में भर्ती होना. उनके इस सेंटर से अब तक आर्मी, नेवी, एनडीए, एयरफोर्स, यूपीपी, पैरामेडिकल और अलग-अलग बलों में 3500 से अधिक युवक और 35 युवतियों का चयन हो चुका है.
ये सभी युवा-युवतियां बेरोजगार थे.
बेरोजगार युवा-युवतियों को मुफ्त में सेना में भर्ती कराने के लिए प्रशिक्षण देने का सीधा-सीधा अर्थ है, देश के विकास में सहयोग देना और बेरोजगार युवा-युवतियों को नैतिक पतन से बचाकर देश-समाज के लिए उपयोगी बनाना. यही पावन कार्य सेवानिवृत्त कैप्टन आद्या प्रसाद दुबे ने सेवानिवृत्ति के बाद. उनके इस महान प्रयास को हमारे कोटिशः नमन.