मुक्तक
तुम्हे सूरज के आगे सर झुकाना ही पड़ेगा
विजय चिर चाहते तो हार जाना ही पड़ेगा
कहाँ तक जाओगे आगे अँधेरा ही अँधेरा
ये दावा है कि इक दिन लौट आना ही पड़ेगा
-प्रवीण ‘प्रसून’
तुम्हे सूरज के आगे सर झुकाना ही पड़ेगा
विजय चिर चाहते तो हार जाना ही पड़ेगा
कहाँ तक जाओगे आगे अँधेरा ही अँधेरा
ये दावा है कि इक दिन लौट आना ही पड़ेगा
-प्रवीण ‘प्रसून’