चीन की गतिविधियों को समझें
कुछ दिनों पूर्व भारतीय सीमा में घुंसे तीन चीनी हेलीकाप्टर की खबर सुर्ख़ियों में आई थी। चीन की अवैध रूप से घुसपैठ पर अंकुश लगना चाहिए। ये बाद में आदतन रूप ले लेगी और बात ज्यादा बढ़ जाने पर व्यर्थ तनाव उत्पन्न करेगी। वर्तमान में चीन के सामान के विरोध में लोग आगे आए है। चीन से युद्ध 62 में होने के बाद चीन ने भारतीय सीमा पर अवरोध उत्पन्न किये व् पाकिस्तान को हथियार और अन्य स्तर पर मदद व् समर्थन करता आ रहा है। हमे स्वदेशी सामग्रियों को महत्त्व व बढ़ावा देकर देशी उत्पादकों को प्राथमिकता देने से हमारा पैसा देश में ही रहे ऐसा कार्य करना होगा। चीन से बनी सामग्रीयों में मूल्य की कमी से आकर्षित अवश्य हुए मगर इसके दुष्परिणाम भी कम नहीं है। चायना मंजा कितने (इंसानो, पशु -पक्षियों आदि) को घायल कर चूका, प्लास्टिक चावल, पत्ता गोबी, मोबाइल फटने, मेहंदी से हाथ पैर में एलर्जी आदि से सब परेशांन थे इनके अलावा पाकिस्तान को आतंक गतिविधियों में मदद करना चाइना सामग्रीके बहिष्कार का कारण बना इसी कारण चीन भारत की अर्थ व्यवस्थाओं को गड़बड़ाने की कोशिश में घातक और सस्ती सामग्रियों की खेप भारत को पहुंचा रहा है। चीन ने बनाई पूरी दुनिया में मार करने वाली डोंगफेंग -10 मिसाइल। चीन इस तरह की अफ़वाए फैलाकर दुनिया के समक्ष परमाणु हथियारों का भय बताता आरहा है। अंतर्राष्ट्रीय बैठकों में महाविनाशकारी हथियारों के निरस्त्रीकरण का मुद्दा क्यों नहीं उठाया जाता। और जो देश हथियारों के जमावड़े की होड़ में लगे हुए उन पर प्रतिबंधित क्यों नहीं किया जाता। कई देश अंतर्राष्ट्रीय नियमों के उल्ल्घन की खुले आम धज्जियाँ बिखेरते नजर आते है। किन्तु उस पर रोक लगाने का साहस अंतर्राष्ट्रीय नियमों में कहा घूम होगया है ?। ये समझ से परे है। क्या फायदा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली बैठकों में उपस्थिति दर्ज करवाने का।इस तरह से उल्ल्घन से तो विश्वशांति, मेत्रीयता पृथ्वी पर कब प्राप्त होगी।ये समझ से परे है। वर्तमान में परमाणु, जैव एवं रासायनिक हथियार प्रणाली के इस्तेमाल की सोच ज्यादा विकसित हो रही है। जैव प्रयोग द्धारा विषाणु या जीवाणु दुश्मन के खेमे के वायु मंडल में विषाणु से महामारी फैलाकर उन्हें मारने का काम सरलता से किया जा सकता है। परमाणु हथियारों के निरस्त्रीकरण की दिशा को छोड़कर जैविक हथियारों को एकत्रित करने की होड़ में कई देशों ने तो विषाणुओँ को पूर्व से ही प्रयोगशालाओं में इकट्ठा करके रखे हुए है।जबकि सन 1972 में अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत इनके प्रयोग पर प्रतिबन्ध लग चूका है। एक जानकारी के मुताबिक राष्ट्रीय विषाणु विज्ञानं संस्थान(नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ बॉयरालॉजी )के मत के अनुसार जैवीय संरचना के बारे में जानकारी अति महत्वपूर्ण होती है। इससे प्राप्त आँकड़ों के प्रयोग को जैवीय संरचना बदलने में भी किया जा सकता है। इसी कारण कोई देश जैवीय संरचना संबंधी जानकारी अन्य देशों को नहीं देता। इस हेतु परमाणु, जैव रासायनिक हथियारों के प्रयोग में काम आने वाली सामग्रियों को पूर्णतया गोपनीय रखा जाकर विशेष सतर्कता बरती जाती है और बरती भी जाना चाहिए (इनके प्रयोग पर प्रतिबद्ध नियमों को ध्यान में रखते हुए )। इनके प्रयोग से महामारी के उन्मूलन में सतत लगे विश्व स्वास्थ्य संगठन अपना लक्ष्य कभी नहीं पूरा कर सकेंगे। सुरक्षा हेतु आतंकवाद के खिलाफ कड़ी करवाई, परमाणु प्रतिष्ठानों पर कड़ी सुरक्षा के साथ परमाणु वैज्ञानिकों की सुरक्षा एवम महत्वपूर्ण स्थानों पर सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करनी होगी। दक्षिण सागर में चीन अब बना रहा मिसाइल भंडार गृह । मिसाइल भंडारण और मिसाइल तैनाती का कार्य में सतत लगा चीन दक्षिण सागर की समुद्री सीमाओं पर कब्ज़ा बढाता जा रहा है। कुछ माह पूर्व बैलेस्टिक मिसाइलों के साथ अभ्यास कर रही चीनी सेना की खबरे भी प्रकाश में आई थी।एक जानकारी के मुताबिक इस अभ्यास में रासायनिक व जैविक हथियारों से निपटते,सैटेलाइट के जरिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जाम करने और अपने उपकरणों को बचाने का भी अभ्यास करते हुए दिखाया गया था। हथियारों को लेकर गोपनीयता बरतने वाली चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने डी एफ -16 मिसाइल सिस्टम के साथ अभ्यास का वीडियो जारी किया था । वर्तमान में परमाणु, जैव एवं रासायनिक हथियार प्रणाली के इस्तेमाल के लिए चीन की भंडारण की सोच ज्यादा ही विकसित हो रही है। ये भंडारण किस बात का संकेत है ? सर्वप्रथम तो दक्षिण चीन सागर का चीन द्धारा सैन्यीकरण नहीं किया जाना चाहिए।वहाँ पर अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत कार्य होना चाहिए। ताकि अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान सही मायने में हो सके।
— संजय वर्मा “दृष्टी”