निःशब्द
” क्या हुआ माँ ? ये भाभी जी कहाँ जा रही हैं ? ”
” अब तेरे भैया रहे नहीं ! अब यह विधवा यहां क्या करेगी ? जा रही है अपने भैया के पास । “
” क्यों माँ ? इसके भैया इसके अपने हैं और हम क्या इसके कोई नहीं ? ऐसा क्यों मां ? “
” अरे तू नहीं समझेगा ! अभी उसकी उम्र ही क्या है ? अभी तो बच्चे भी नहीं हैं ईसके जिसके सहारे वह अपना जीवन काट लेती । कोई अच्छा सा घर वर देखकर इसका भाई इसकी शादी करा देगा । बेचारी खुश रहेगी । “
” तो क्या हमारा घर अच्छा नहीं है माँ ? और क्या मैं अच्छा वर नहीं ? “
अब माँ निःशब्द थी ।
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, बहुत सुंदर कथा. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.