लघुकथा

रिश्तों की नाकामयाबी

लता बहुत उत्साहित क्योंकि आज उसकी बेटी रूपल पगफेरे के लिए आने वाली | ससुराल में बहुत व्यस्त कार्यकृम था | परसों शाश्वत के साथ वो हनीमून पर जाने वाली थी |उसकी तैयारी भी करनी थी | अत: शाश्वत शाम को ही विदा कराकर ले जाने वाले थे|

बहुत कष्टों के साथ लता ने रूपल को पाला था पति सरकारी नौकरी में तृतीय श्रेणी कर्मचारी  थे| इसलिए उनकी मृत्यु के बाद उसे उनकी जगह नौकरी भी तृतीय श्रेणी की  ही मिली | लेकिन उसने बेटी को पढाने में कोई कसर नही छोड़ी थी| उसने बेटी को अनेक तकलीफें सहकर भी उच्च शिक्षा दिलाई |

लता की मेहनत रंग लायी और रूपल को एक प्रतिष्ठित कम्पनी में जॉब मिल गयी| वहीँ उसकी मुलाकात शाश्वत से हुई दोनों मै प्यार हुआ और फिर शादी लता के लिए बच्चों की ख़ुशी में ही उसकी ही ख़ुशी थी|

लता जानती थी की शाश्वत बड़े घर का इकलोता बेटा था और हैसियत में उससे कई ज्यादा था |  इसलिए लता ने शादी में भविष्य की कोई परवाह किये बिना अपनी सामर्थ्य से ज्यादा खर्च किया लेकिन फिर भी मामला बेटी का था | वो चाह रही थी की यदि उसे आज बेटी के साथ थोड़ा समय बिताने को मिल जाए तो वो उससे अपने मन की दो बात कर ले उससे पुछ ले की ससुराल वाले शादी से खुश है ना जिससे की उसका मन हल्का हो जाए |

थोड़ ही देर में बेटी और दामाद आ गये…… थोडा समय चाय नाश्ते में चला गया और फिर वो लंच की तैयारी में लग गयी बीच-बीच में वो उन दोनों से भी बात करती जाती थी |लेकिन वो बेटी के साथ अकेले में कुछ समय बिताना चाहती थी |

थोड़ी देर में किसी ज़रूरी काम से शाश्वत कुछ देर के लिए बाहर चला गया वो बेटी को लेकर अपने कमरे में आ गयी  दोनों माँ बेटी पलंग पर लेट गये प्यार से बेटी के सर को सहलाते हुए उसने पूछा बेटा ससुराल में सब ठीक है न बिटिया तुम खुश तो हो न |

क्या ठीक है मम्मी रूपल खीजकर बोली “तुम्हे पैसों की जरूरत थी तो मुझ से मांग लेती मैंने भी बैंक में कुछ सेविंग्स कर के रखी हुई थी ” पर मेरे ससुराल वालों के लिए तोहफे तो ठंग के खरीदने चाहिए थे| आपका कोई भी तोहफा किसी को भी पसंद नही आया वह उठकर बैठ गयी और बोली आप इतना तो सोचती अब मुझे वहीं रहना है कोई कुछ बोला तो नही पर सबके मुँह बन गये मेरी कितनी बेज्जती हुई “

लता सन्न रह गयी उसका सारा उत्साह चला गया उसने तो अपनी जान निकल दी किन्तु बेटी फिर भी नाराज़ थी उसे ऐसा लगा की रिश्तों को निभाने ने में वो पहले कदम में ही नाकामयाब हो गयी |

 

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर'

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' लेखक, विचारक, लघुकथाकार एवं वरिष्ठ स्तम्भकार सम्पर्क:- 8824851984 सुन्दर नगर, कोटा (राज.)