आधी अधूरी ख़्वाहिशें !
आधी अधूरी ख़्वाहिशों को ले चली मैं जाने कहां !
तुम न होना उदास बेवजह
इस अल्हड़ के लिए
जितने भी पल जीए
हाँ वो बस तुम संग जिए
खामोशी ओड़े चल पड़े
हैं हम उस डगर
यहां से कोसों दूर
रह गया अब तुम्हारा शहर
ख़्वाहिशें तो ख़्वाहिशें हैं
किसकी हैं सब पूरी हुई
आधी अधूरी ख़्वाहिशें लिए
चली अब मैं जाने कहां
यादें दे चली संग
दे चली मैं दुआ
तुम्हारी हंसी में हंसना
है अब तो मुझे
दुख में भी हरदम
संग पाओगे मुझे
अलविदा हमनशीं
ऐ मेरे हमसफर
हंसते हुए विदा करना
तुम हमको मगर !!!
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !