फिर चल पड़ी ज़िन्दगी !
फिर चल पड़ी जिन्दगी !
खफ़ा थे तुम यूं ,जब तलक हमसे ;
जीते तो थे हम, पर जीए बेमन से !
ज़िन्दगी में क्या कहें, इक ठहराव सा रहा;
मुस्काते थे लब पर,खुशियों का अभाव सा रहा !
तुम्हें पता भी नहीं ,किस दौर से गुज़रे हम;
कितनी बार सूखे पत्तों से, बिखरे हम !
याद आते रहे तुम पल प्रतिपल मगर;
धड़कने थमी थी, नज़र आती न थी कोई डगर !
मगर आज कैसे कहुं अपनी खुशी को तुम्हें ;
तुम मुस्काए हो देख कर, इस अदा से जो हमें !
हर और राहें हैं , बांहे फैलाए हुए अजनबी ;
लगता है जैसे फिर चल पड़ी ज़िन्दगी !!!
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !