लकड़ी का गट्ठर
लकड़ी का गट्ठर किसी को सफलता के शिखर पर पहुंचा सकता है और उसको कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जितवा सकता है, इस पर विश्वास करना बहुत मुश्किल है. खुद कॉमनवेल्थ खेलों की स्वर्ण पदक विजेता मीराबाई चानू को भी कभी ऐसा नहीं लगा, लेकिन ऐसा हो गया. आज मीराबाई चानू को अपने पिछले दिन याद आ रहे हैं.
इम्फाल से 20 किमी दूर नोंगपोक काकचिंग गांव में गरीब परिवार में जन्मी और छह भाई बहनों में सबसे छोटी मीराबाई अपने से चार साल बड़े भाई सैखोम सांतोम्बा मीतेई के साथ पास की पहाड़ी पर जलावन के लिए लकड़ी बीनने जाती थीं. तब वह 12 साल की थी. इसी उम्र में ही उसने ज्यादा वजन उठाने के अपने हुनर का परिचय दे दिया था. तब वह अपने बड़े भाई से अधिक वजनी लकड़ियां आसानी से उठा लेती थीं. वह फिर भारोत्तोलन से जुड़ गईं. वह हमेशा कुछ हासिल करने के लिए जुनूनी थीं. वह कभी दबाव में नहीं आती और शांत चित रहती हैं. बचपन से उनका यह अभ्यास आखिर में उनके काम आया और वह देश की चोटी की वेटलिफ्टर बन गईं. 23 वर्षीय खिलाड़ी भारतीय खेल जगत की रानी बनकर उभरी हैं. चानू ने गोल्ड कोस्ट में 48 किग्रा में स्नैच, क्लीन एवं जर्क का खेलों का रेकॉर्ड बनाकर भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाया.
ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में खेलों के पहले दिन मीराबाई चानू ने महिलाओं के 48 किलोग्राम भारवर्ग में गोल्ड मेडल जीता था. मीराबाई ने कुल 196 किलोग्राम वजन उठाया था.
खेलों के पहले दिन मीराबाई चानू ने महिलाओं के 48 किलोग्राम भारवर्ग में गोल्ड मेडल जीता था। मीराबाई ने कुल 196 किलोग्राम वजन उठाया था। वहीं पी गुरुराजा ने पुरुषों के 56 किलोग्राम भारवर्ग में सिल्वर मेडल हासिल किया था।
वेटलिफ्टर संजीता चानू ने गोल्ड कोस्ट में हो रहे कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 में भारत के लिए दूसरा गोल्ड मेडल जीता है। ऑस्ट्रेलियाई शहर में संजीता ने शुक्रवार को 53 किलोग्राम भारवर्ग में सोने का तमगा जीता। किसान के बेटे दीपक ने दिलाया चौथा मेडल. अब भारत की पदक संख्या 2 गोल्ड, 1 सिल्वर, 1 कांस्य के साथ 4 हो गई है.