ग़ज़ल : अन्याय के विरोध में जाने से डर लगा
अन्याय के विरोध में जाने से डर लगा ।।
भारत का संविधान बताने से डर लगा ।।
यूँ ही बिखर न जाये कहीं मुल्क आपका ।
कोटे पे आज बात चलाने से डर लगा ।।
घोला है ज़ह्र अपने गुलशन में इस तरह ।
अब जिंदगी को और बचाने से डर लगा ।।
फर्जी रपट लिखा के वो अंदर करा गया ।
मैं बे गुनाह था ये बताने से डर लगा ।।
शोषित हुआ सवर्ण करे भी तो क्या करे ।
उसको तोअपना ज़ख्म दिखाने से डर लगा ।।
कैसी स्वतन्त्रता है ये आजाद मुल्क की ।
अब लोकतंत्र देश में लाने से डर लगा ।।
जो छीनता है रोटियां बच्चों के हाथ से ।
ऐसे वतन पे जान लुटाने से डर लगा ।।
लाचार कर दिया है सियासत की मार ने।
मुझको तो अपनीजात लिखाने से डर लगा ।।
जो राष्ट्र द्रोह कर रहे भारत को बंद कर ।
गुंडो से कत्ले आम कराने से डर लगा ।।
नामो निशां मिटाने की हसरत लिए हैं वे ।
उनसे तो आज हाथ मिलाने से डर लगा ।।
ठग कर गयी है खूब ये जम्हूरियत मुझे ।
अपना यहां वजूद बचाने से डर लगा ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी