उपकार का बदला
एक मछुआरा सोहनलाल,
था गरीब पर नेक थी चाल,
रोज कमाता जितना भी वो,
कुछ खाता कुछ करता दान.
उस नगरी का राजा लोभी,
चैन न लेने देता था,
जो न किसी दिन कर दे पाता,
जान उसी की लेता था.
एक दिवस मछली को फंसाने,
जाल बिछा बैठा मछुआरा,
एक न मछली फंसी शाम तक,
मन में दुःखी हुआ बेचारा.
अन्तिम बार भाग्य आजमाने,
उसने फिर से जाल फैलाया,
अब तो एक फंसी थी मछली,
जल्दी उसने जाल उठाया.
मछली क्या थी मानो देवी,
तेज फूटता आंखों से,
कोमल-कोमल रंग सुनहरी,
मोती झरते सांसों से.
बोली, ”मुझे छोड़ दो भैया,
मैं हूं इस सरिता की रानी,
प्रजा दुःखी होगी रानी बिन,
व्यथा न तुमने मेरी जानी?
अगर छोड़ दोगे तुम मुझको,
काम तुम्हारे मैं आऊंगी,
झट से थैली जादू की ले,
पास तुम्हारे ले आऊंगी”.
मछुआरे ने दया दिखाकर,
छोड़ दिया मछली रानी को,
मछली थैली जादू की ले,
दे गई थी झट मछुआरे को.
थैली से ले हीरे-मोती,
मछुआरा परिवार पालता,
राजा को कर रोज चुकाकर,
काम भलाई के भी करता.
उसकी खुशी देखकर भोलू,
राजा को चुगली कर आया,
राजा ने थैली को लेकर,
मछुआरे को था बुलवाया.
राजा बोला, ”ऐसी थैली,
मुझको भी लाकर दे-दे मछुए,
वरना जान तुम्हारी लूंगा,
तब खाएंगे तुमको कछुए”.
मछुआरा रानी से बोला,
रानी लाई वैसी थैली,
बोली, ”इसको अभी न खोलो,
राजा ही खोलेगा थैली”.
राजा ने जब थैली खोली,
एक सांप ने काटा उसको,
राजा मरा, प्रजा अब खुश थी,
मछुआरा भी भागा घर को.
मछुआरे ने दया दिखाई,
मछली ने धन खूब दे दिया,
राजा से पीछा छुड़वाकर,
जग में उसका नाम कर दिया.
भला करने वाले का भला होता है और बुरा करने वाले का बुरा.
मछली ने दिया उपकार का बदला, मछुआरा धनवान हो गया और लोभी राजा मारा गया.