राहों में कभी खार बिछाती है ज़िंदगी
फूलों के कभी हार सजाती है ज़िंदगी
मुर्गे कफस को उड़ना सिखाती है ज़िंदगी
पहरे भी बेशुमार बिठाती है ज़िंदगी
कैसे जुबान खोले कोई अहले हक यहाँ
हक गो को गुनहगार बनाती है ज़िंदगी
देती है कभी छोड़ सफीनों को भंवर में
कश्ती को कभी पार लगाती है ज़िंदगी
अज्ञात हो अहसास घना दिल के आस पास
कामिल तभी अशआर लिखाती है ज़िंदगी
— अजय अज्ञात
फ़रीदाबाद
9650994445