कुण्डली/छंद

कहमुकरियाँ

रात अँधेरी वो था आया
मेरा मन कुछ कुछ घबराया
देख भोर को छुपता मांद
क्या सखि प्रेमी..? न सखि चाँद।

अधरों की बढ़ती है प्यास।
कैसे कह दूं सब अहसास
मन में उठती प्रणय उमंग।
क्या सखि साजन..? न न री भंग।

हुई प्रेम में उसके पागल।
फैल गया आंखों का काजल।
निकली मेरे मुँह से दैया।
क्या सखि साजन..?
न री कन्हैया।

सुधि बुधि भूली, भूली चैन।
दिवस कटे कब कटती रैन।
करती किससे वाद विवाद।
क्या सखि साजन. ? न सखि याद।

  1. *अनहद गुंजन*

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*