कहमुकरियाँ
रात अँधेरी वो था आया
मेरा मन कुछ कुछ घबराया
देख भोर को छुपता मांद
क्या सखि प्रेमी..? न सखि चाँद।
अधरों की बढ़ती है प्यास।
कैसे कह दूं सब अहसास
मन में उठती प्रणय उमंग।
क्या सखि साजन..? न न री भंग।
हुई प्रेम में उसके पागल।
फैल गया आंखों का काजल।
निकली मेरे मुँह से दैया।
क्या सखि साजन..?
न री कन्हैया।
सुधि बुधि भूली, भूली चैन।
दिवस कटे कब कटती रैन।
करती किससे वाद विवाद।
क्या सखि साजन. ? न सखि याद।
- *अनहद गुंजन*