रोटी कौन खाएगा?
छोटी-सी मुर्गी थी लाल,
बतख सफेद थी खूब कमाल,
चितकबरी बिल्ली शैतान,
काला कुत्ता बड़ा बेईमान.
चारों साथ-साथ रहते थे,
कभी न आपस में लड़ते थे,
मुर्गी तो करती थी काम,
बाकी सब करते आराम.
एक बार मुर्गी ने सोचा,
इनको सबक सिखाना होगा,
सुस्ती से आती कंगाली,
इनको चुस्त बनाना होगा.
एक खेत से दाने पाकर,
बोली, ”गेहूं कौन बोएगा?”
बिल्ली-बतख ने किया इनकार,
कुत्ता बोला, ”मुझसे न होगा”.
मुर्गी ने गेहूं को बोया,
खूब खाद-पानी देती थी,
समय-समय पर निराई-गुड़ाई,
करके ही वह दम लेती थी.
समय कटाई का जब आया,
बिल्ली बोली, ”मैं क्यों काटूं?”,
कहा बतख ने, ”मुझे न आता”,
कुत्ता बोला, ”मुझे न भाता”.
समय कूटने का जब आया,
बिल्ली बोली, ”मैं बीमार”,
कहा बतख ने, ”सिर दुखता है”,
कुत्ता तो चम्पत ही हो गया.
अब पिसवाने की थी बारी,
”क्वें-क्वें” बतख ने डुबकी मारी,
बिल्ली ”म्याऊं-म्याऊं” करती,
कुत्ते की ”भौं-भौं” रट जारी.
अब रोटी पकने को थी तो,
बिल्ली बोली ”हाथ जलेगा”,
बोली बतख ”हूं मैं तो छोटी”,
कुत्ता बोला, ”कौन खपेगा?”
रोटी भी मुर्गी ने पकाई,
बोली, ”रोटी कौन खाएगा?”,
बिल्ली-बतख तो थीं तैयार,
कुत्ता बोला, ”मैं खाऊंगा”.
मुर्गी बोली, ”जिसने बोया,
जिसने काटा-कूटा गेहूं,
जिसने पिसवाया व पकाया,
वही खाएगा रोटी हे हूं”.
करता है जो काम ध्यान से,
रोटी का हकदार वही है”,
ऐसे कहकर गप्प से खा ली,
बच्चो, यह तो बात सही है.
सुस्त और आलसी लोग केवल रोटी खाने के ही शौकीन होते हैं, लेकिन उसके लिए कुछ काम नहीं करना चाहते मुर्गी-बतख-बिल्ली-कुत्ता साथी थे. साथ रहकर भी सिर्फ मुर्गी ही काम करती है, बाकी सब खाने के समय आगे आ जाते हैं. उनको मुंह की खानी पड़ती है. इस बाल कथा गीत में यही बताया गया है.