राखी और पंचवटी प्रसंग
1.राखी
राखी के कच्चे धागों में,
बंधा हुआ है इतना प्यार,
कर्मवती की राखी पाकर,
हमायूं को हुआ गर्व अपार.
झटपट उसकी रक्षा हेतु,
सेना ले तैयार हुआ,
राखी न जाने जन्म के बंधन,
राखी का सम्मान हुआ.
2.पंचवटी प्रसंग
पंचवटी में जनकसुता ने,
देखा मृग मारीच,
प्राणप्रिया की इच्छा पर मृग,
चले मारने ईश.
मौका पाकर रावण ने तब,
हरण किया सीता का,
”हा हा” करती सीता बोली,
बदला लिया किस ऋण का.
कैसी विकट घड़ी में मैंने,
मांगी थी मृगछाला,
संकट में अब लाज पड़ी है,
पड़ी विरह की ज्वाला.
राखी की महमा की कोई विआख्य नहीं लेकिन आज रावण भी बहुत बढ़ गए हैं .इस लिए भाईओं में भी इजाफा होना चाहिए .
पंचवटी में सीता-हरण का प्रसंग अति दुःखद व सोचनीय है. आज भी किसी न किसी रूप में रावण सीताओं का हरण करते हैं. उस समय तो केवल सीता-हरण हुआ था, आज सीताओं की लाज का हरण किया जाता है. राखी की महिमा अपरम्पार है.