क्षणिका

राखी और पंचवटी प्रसंग

1.राखी

राखी के कच्चे धागों में,
बंधा हुआ है इतना प्यार,
कर्मवती की राखी पाकर,
हमायूं को हुआ गर्व अपार.
झटपट उसकी रक्षा हेतु,
सेना ले तैयार हुआ,
राखी न जाने जन्म के बंधन,
राखी का सम्मान हुआ.

2.पंचवटी प्रसंग

पंचवटी में जनकसुता ने,
देखा मृग मारीच,
प्राणप्रिया की इच्छा पर मृग,
चले मारने ईश.

मौका पाकर रावण ने तब,
हरण किया सीता का,
”हा हा” करती सीता बोली,
बदला लिया किस ऋण का.

कैसी विकट घड़ी में मैंने,
मांगी थी मृगछाला,
संकट में अब लाज पड़ी है,
पड़ी विरह की ज्वाला.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “राखी और पंचवटी प्रसंग

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राखी की महमा की कोई विआख्य नहीं लेकिन आज रावण भी बहुत बढ़ गए हैं .इस लिए भाईओं में भी इजाफा होना चाहिए .

  • लीला तिवानी

    पंचवटी में सीता-हरण का प्रसंग अति दुःखद व सोचनीय है. आज भी किसी न किसी रूप में रावण सीताओं का हरण करते हैं. उस समय तो केवल सीता-हरण हुआ था, आज सीताओं की लाज का हरण किया जाता है. राखी की महिमा अपरम्पार है.

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