अन्नदाता
देश को रोटी खिलाने वाला,
खुद रोटी को मोहताज़ है,
यह कैसी व्यवस्था है,
और यह कैसा समाज है,
गरीब रोटी को तरस रहा है,
अमीर रोटी को दुत्कार रहा है,
अन्नदाता जो जीव का पालनहार है,
कुदरत की मार से भी बेहाल है,
यह बेमौसम की बरसात ,
सबका पेट भरने वाले के ही
पेट पर लात है
और
नूडल,बर्गर,पीज़ा,सब मालामाल है,
विदेशी भर रहे हैं अपनी तिजोरियां,
और बेचारा “अन्नदाता ” कंगाल है,
— जय प्रकाश भाटिया