मुक्तक/दोहा उफ़ रवि प्रभात 12/04/201812/04/2018 ये सादगी और तुम्हारा ये संजीदापन मेरी जान ही लेते है मुँह से उफ़ तक नहीं निकलती और ये मेरे प्राण ही लेते है