धैर्य का सुदृढ़ संकल्प
सुनील अच्छी तरह जानता था, कि हर काम में अग्रणी तथा अत्यंत प्रतिभाशाली होते हुए भी उसके अंदर धैर्य की कमी है. अक्सर वह बहुत जल्दी में रहता था. अपनी इसी आदत के कारण वह काम पूरा करके उस पर एक उड़ती नजर भी नहीं डालता था, इसलिए उसके अनेक कार्यों में छोटी-छोटी गलतियां रह जाती थीं. वह बहुत शिद्दत से इस समस्या से छुटकारा पाना चाहता था. समाधान के लिए मनीष के कहने पर वह उसके साथ एक बाबाजी के पास चला गया. वहां से आकर वह वहां के घटनाक्रम पर मंथन कर रहा था.
मनीष ने सबसे पहले बाबाजी से उसका परिचय कराया. बाबाजी ने मनीष से उसकी समस्या पूछी. मनीष ने अपनी विस्मृति के बारे में बताया. वह बहुत ध्यान से पढ़ता था, उसे पढ़ा हुआ अच्छी तरह याद भी हो जाता था, पर थोड़ी देर में सब भूल जाता था. बाबाजी ने उसका हाथ देखा. आधे घंटे तक वह हाथ बाबाजी के हाथ में दिए बैठा धैर्य से उनका विश्लेषण सुनता रहा और हां जी-स्वीकृति में सिर हिलाता रहा. फिर आई समाधान की बारी. समाधान में उसको मंत्र का जाप बताया गया, साथ ही रूठे ग्रहों को मनाने के लिए कुछ पूजा का परामर्श दिया गया. पूजा के लिए सामग्री की सूची वाट्सऐप पर मैसे
आपने इस कथा में जिस विषय को उठाया है वह प्रशंसनीय है। मुझे लगता है की ध्यान संध्या व योगाभ्यास से हम अपने मन को वश में कर सकते हैं और इससे किसी भी कार्य को धैर्य से संपन्न कर पाते हैं अति शीघ्रता नहीं करते। सादर नमस्ते बहिन जी।
प्रिय मनमोहन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. आपने बहुत अच्छा उपाय सुझाया है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
धैर्य के लिए सुदृढ़ संकल्प ही काफी है, उसी से मन में साहस का संचार होगा, हाथ दिखाकर मन को कमजोर बनाने और मंत्र-जाप या पूजा से नहीं. उसमें समय गंवाने से तो अपने मन में धैर्य की शक्ति का संचार करना ही बेहतर है.