ग़ज़ल
हर सितम हर अलम है गवारा मुझे
साथ जब से मिला है तुम्हारा मुझे।
ज़िंदगी अब हमें रास आने लगी
मिल गया आपका जो सहारा मुझे।
देखकर मुझको दुनिया ये हैरान है
के इस कदर आपने हैं संवारा मुझे।
मर गए थे मोहब्बत की चाहत लिये
मिल गया तुमसे जीवन दुबारा मुझे।
दिल धड़का मचलने लगा ज़ोर से
प्यार से आपने जब पुकारा मुझे।
तुम हो कश्ती मुझे ले लो आगोश में
मिल ही जाएगा इकदिन किनारा मुझे।
तेरे आने से रोशन हुई है नज़र
तुम लगे आसमां का सितारा मुझे।
तेरे क़दमों में ‘जानिब’ है जन्नत मेरी
तू लगा इस कदर से हमारा मुझे।
— पावनी दीक्षित “जानिब” सीतापुर