समाज में पनपती घातक प्रवृत्ति
संविधान निर्माता या कांग्रेस की जो भी नियत रही हो लेकिन दलितों के उत्थान के लिये जो भी नियम उपनियम बनाए गए आम जन मानस को उससे कोई एतराज नहीं था क्योकि लोग अंतर्मन से महसूस कर रहे थे की दलितों की हालत सच में बहुत दयनीय है और उन्हें कुछ ऐसी सुविधा मिलनी चाहिए जिससे उनके जीवन यापन में अपेक्षित सुधार आ सके. लेकिन ७० साल बीतते बीतते लोगो की धारणा अब बदल रही है क्योकि दलित बर्ग में एक ऐसा बर्ग पैदा हो गया है जो प्राप्त सारी सुविधा को अपना हक़ समझता है और जिन्ना के पैटर्न पर उसे हासिल करना चाहता है. इस घातक प्रबित्ति ने कन्हैया, जिग्नेश और मायावती जैसे तमाम घातक लोगो को पैदा कर दिया है.
यद्यपि दलित लोग इतने मुर्ख नहीं है की वे यह न समझते हो की इस प्रकार के कृत्य से वैमनस्य बढेगा जिससे देश और उनका दोनों का नुक्सान होगा लेकिन उनके सोच पर उनका जातीय अहम् भारी पड़ जाता है और उनको भ्रम हो जाता है की कन्हैया और जिग्नेश के पराक्रम से हम सवर्णों से वह सब छीन लेंगे जो हमारे पुरखो से सवर्ण छीन लिए है. इन लोगो का जलन अब सतह पर आ गया है , प्रतिक्रया स्वरुप सवर्ण जो ७० साल से चुप बैठा था अब लामबंद होने लगा है और २०१९ में कोई भी जीते लेकिन आरक्षण पर फैसला संसद या न्यायालय में न होकर अब जनता द्वारा होगा.
राठा जाट गुर्जर पटेलो के बीच में तो यह आग कब से सुलग रही है जिसे हवा देकर दलित समझ में नहीं आता क्या प्राप्त करना चाहते है. जिस कन्हैया के साथ ए आँख मूदकर खड़े है वह लोगो के निगाह में देशद्रोही साबित हो चुका है. चूँकि दलित वर्ग बिना गुण दोष का विचार किये कन्हैया के साथ खडा है लिहाजा उनकी भी निष्ठा संदेह के घेरे में आती जा रही है. अगर दलितों को लगता है की हम कन्हैया और जिग्नेश के हुडदंगी के बूते सब कुछ पा लेंगे तो यह उनका बहुत बड़ा भ्रम है और अंत में यह इन्ही के लिए घातक सिद्ध होगी.