दुनियाँ….
ये दुनियाँ हमें कहाँ से कहाँ ले जाती है
खुशी और गम दो हिस्सों में बांट जाती है
हमें तो देना पड़ता है हरदम इम्तहान
जिंदगी हमें यही समझा के जाती है
कहते हैं दुनियाँ वाले कि तुम क्या करोगे
उनकी यही बात तो हमें आगे बढ़ाती है
इस दुनियाँ में कब क्या हो जाये नहीं पता
स्वयं दुनियाँ भी नहीं समझ पाती है
समय और लक्ष्य ये दो पहलू होते हैं
लक्ष्य पाने के लिए समय भी ले जाती है
कहते हैं ज्ञान से बढ़कर कुछ नहीं होता
ये बात दुनियाँ को कहाँ समझ में आती है
पैसा ही दुनियाँ को दिखाई देता है हरवक्त
पैसा न हो तो दुनियाँ आँखें चुराती है
सोचो कुछ और कुछ कर देती है दुनियाँ
पर ये दुनियाँ हमको बहुत कुछ सिखाती है
– रमाकान्त पटेल